Add To collaction

रहस्यमाई चश्मा भाग - 8




मगर उसकी हर कोशिश उसकी बेबसी लाचारी का मज़ाक उड़ाती जैसे उसके तक़दीर के जख्मों पर नमक छिड़क रही थी जिसकी असह पीड़ा से कराहती शुभा हर लम्हा अपनों तक़दीर से लड़ती और नारी के मातृत्व कि ताकत का एहसास ही शायद उसकी जिंदगी के टिमटिमते तारे सभी अरमानो में कभी कभी उम्मीदों कि रौशनी रौशन हो जाती जो उसे जिंदगी से लड़ने और अपनी तक़दीर को बड्सलने का अंतर मन का आवाहन करती शुभां जिंदगी क़ि जंग और तकदीर के बीच झूलती असह दर्द वेदना और कीचड़ से निकलने का अथक प्रयास करती मगर हर बात किस्मय उस पर पारीहास करती वह थक चुकी थी!

 सुबह सुबह तूफानी और विगुल ताड़ी की दूकान से ताड़ी पीकर लौट रहे आपस में ताड़ी की ताज़गी और मेहुल कि ताड़ी की तारीफ करते आपस में बतियातते आज मेहुल ने पहली धार कि ताड़ी पिलायी तूफानी ने विगुल से कहा तो विगुल तपाक से बोला तूफानी भाई रोज हम लोग देर से आते है तब मेहुल ताड़ी में अनाप सनाप चीजे मिला देता है और पाईसो में कौनो रियायत नहीं करता है।

तूफानी ने कहा विगुल चाहे जो हो मेहुल की ताड़ी न मिले तो हम मजुरन् के मेहनत से हाड़ झुरा जाई तफी एकाएक तूफानी की नजर कीचड़ में कराह रही शुभा पर पड़ी तूफानी ने कहा बिगुल देख तो जरा कीचड़ में कौनो जनाना पड़ी तड़फड़ा रही है लागत है कौनो बदमाश मारके कीचड़ में फेका है का ।

विगुल बोला छोड़ भाई तूफानी घर चल बवाल में पड़े कौनो फायदा नहीं है । तूफानी के मन में दया जगी उसने कहा देख भाई विगुल ठीक है कौनो परेशानी आवे पुलिश थाना हो जावे तबो एका कीचड़ से निकाल के दम लिहा जाय आखिर विगुल को तूफानी की बात जच गयी बोला ठीक है भाई तूफानी चलो भगवान् भुत भाँवर भोले नाथ का नाम् लेत फिर दोनों एक साथ कीचड़ कीचड़ में शुभा के पास गए जो अर्धचेतन अवस्था में बड़बड़ा रही थी!

 विगुल फिर बोला एका हाथ लगावे से पहले एक बार फिर सोच लेव भईया तूफानी कही मर मरा गई तो हवलदार दारोग़ा के सोटा हमन क जान ले लेई और ताड़ी तो सपना होई जाई मजुरा आदमी रोज मेहनत मजदूरी करके आपन और बच्चन परिवार के पेट पालित् है उहो मुश्किल हो दो जून को रोटियों बदे मोहताज़ हो जॉब कोट कचहरी का चक्कर अलग से तूफानी गरजे के अन्दाज़ में बोला अब जो होई सो देखा जाई!

 पहले एका कीचड़ से निकाल झुर जगहें ले चलो फिर देखा जाय भोले नाथ को का मंजूर है। तूफानी और विगुल बड़ी मेहनत से विक्षिप्त शुभा को निकाल कर् कच्ची सड़क के किनारे ले आये फिर दोनों आश्चर्य से एक दूसरे को देखते हुए एक साथ बोल पड़े आरे ये तो एक औरत है!

 कहाँ यहां कीचड़ में आई गई कुछ देर बाद विगुल बोला तूफानी देखो तोहरे कहे कीचड़ में हमार तोहार कपड़ो कीचड़ में खराब हो गवा एक बट्टी साबुन त खरीद न पाब हम लोग मेहनत मजदूरी से जवन पैसा कमाइत है उस से परिवार की रोटी पानी और हम लोगन के जौक शौक दारु ताड़ी में चला जात है उपर से ई मुसीबत पाल लिहे हौ ।

तूफानी का बड़ी खीज बरी खिसियाई के बोला विगुल। तबे से बकर बकर लगाए है आखिर इंसानियत कौनो चीज है की नाही हम लोग त कौनो नेक काम त करीत नाई का जाने भोले नाथ ई नेक काम हमन से कराई के हमन के पाप के बोझ कुछ कम करे क सोचे होय। विगुल मन मसस के तूफानी के हाँ में हां मिलाने लगा ।

तूफानी और विगुल शुभा को होश में लाने के लिये प्रयास करेने लगे बड़ी मुश्किल से शुभा को होश आया तो बोली सुयस सुयस हमे सुयस के पास पहुचाये दो ।तूफानी और विगुल शुभा से सुयस के विषय में तस्दीक करने लगे ।तूफानी ने पूछा माई सुयस के तोहार मरद के हवन शुभा बिना किसी जबाब के सुयस सुयस बोलती जा रही थी रात में खम्भे से टकराने से सर पर गंभीर चोट था साफ दिख रहा था कि खून के बहने और कीचड़ में रात भर पड़े रहने के कारण शुभा के सर पर उसके साड़ी का पल्लू सर पर बुरी तरह चिपक गया था।

तूफानी के काफी देर पूछने के बाद भी जब कुछ पता नहीं चल सका तब विगुल ने कहा तूफानी भाई तनिक हमहुँ कोशिश करके देख ले शायद एकरे बारे में कुछ पता चल जाय । विगुल पूछने की मुद्रा में बोला माई ना बताईबु तो हम लोग सुयस के कई से लाई पायब कहाँ घर ह तोहार कैसे कीचड़ में गिर गइलू शुभा सिर्फ बोलती सुयस सुयस ।

दोनों पूछते पूछते थक गए मगर शुभा सुयस के अलावा कुछ भी नहीं बता पा रही थी।
बार बार तूफानी और विगुल के कोशिश करने के कारण और गम्भीर घाव भूख और पूरी रात कीचड़ में पड़ी रहने के कारण शुभा अवसाद का शिकार हो विक्षिप्त हो चुकी थी एका एक वह तेज तेज आवाज में चिल्लाने लगी तूफानी ने बोल पड़ा भाई विगुल ई तो पागल है तू सहिये कहत रहा झूठे ऐके कीचड़ से निकाल हमहुँ लोग गन्दा हो गइलीं अब भागो इहाँ से नाही तो रहलो सहल भरम न बची पाई ।

विगुल तो पहले से ही मौके की तलाश में था बोला हम त पहीले कहत रहलिन कि ई पचड़ा में न पड़े मगर तोहे महात्मा बने का शौख चर्रात रहल अब जल्दी भाग एहा से अब देखलन की कीचड़ में ढेला फेकलै खुदो कीचड़ से नाहा गईल गनी जा अब चल बड़ा सुबह सुबह ताड़ी क शौख चर्राईल रहल ह ।तूफानी और विगुल वहां से शुभा को छोड़ चल दिये । रास्ते में जो कोइ भी मिलाता पूछता तूफानी और बिगुल काहे कीचड़ में नहाये है
तूफानी तो कुछ नहीं बोलता मगर विगुल कहता उहा एक ठ पगली है वही क चक्कर में हमन का नौटंकी के बानर बनल हाई जा।
 जो भी पूछता उससे दोनों यही जबाब देते धीरे धीरे सारे गावँ और आस पास इलाके में बात फ़ैल गयी की कोइ खतरनाक पागल खुला घूम रहा है । इधर शुभा विक्षिप्त सी वही कच्ची सड़क पर पड़ी अपने किस्मत पर आंसू बहा रही थी तभी एक छोटा कुत्ते का पिल्ला अपने मुह में दो सुखी रोटी दबाय आकर कुछ देर शुभा के पास आया बैठा कुछ देर बैठने के बाद वह रोटी छोड़ कर् चला गया कुछ देर शुभा रोटी के टुकड़ो को गौर से देखती रही उसका बेटा सुयस ऐसे छोटे असहाय जानवरों का कितना ख्याल रखता था!



जारी है









   24
5 Comments

kashish

09-Sep-2023 07:51 AM

शिर्षक के नाम मे त्रुटी है । "रहस्यमयी चश्मा" यह शीर्षक ऐसा लिखा जाना चाहिये।

Reply

KALPANA SINHA

05-Sep-2023 12:00 PM

Amazing

Reply

Sushi saxena

12-Jul-2023 11:11 PM

Nice 👍🏼

Reply